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नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना करके मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है. कौन हैं देवी शैलपुत्री और उनकी पूजा से क्या लाभ होता है, इस बारे में यहां पढ़ें.
खास बातें
मां दुर्गा का प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री देवी हैं
नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की होती है पूजा
माता को सौभाग्य और शांति का प्रतीक माना जाता है
: 13 अप्रैल मंगलवार से नौ दिनों तक चलने वाला शक्ति की उपासना का पर्व चैत्र नवरात्रि (Chaitra Navratri) जिसे बासंतिक नवरात्रि (Basantik Navratri) भी कहा जाता है शुरू हो रहा है. इन नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ अलग-अलग स्वरूपों (Nine forms of goddess durga) की पूजा होती है. चैत्र नवरात्रि की प्रतिपदा तिथि यानी पहले दिन कलश स्थापना के साथ ही मां दुर्गा के शैलपुत्री रूप की पूजा की जाती है. कौन हैं मां शैलपुत्री, कैसा है उनका स्वरूप, माता की पूजा का महत्व क्या है और किस विधि से करनी चाहिए शैलपुत्री देवी की पूजा, इस बारे में यहां जानें.
मां शैलपुत्री कौन हैं?
मां दुर्गा का प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री (Maa Shailputri) हैं. पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण माता का नाम शैलपुत्री पड़ा. माता शैलपुत्री का जन्म शैल या पत्थर से हुआ था, इसलिए ऐसी मान्यता है कि मां शैलपुत्री की पूजा करने से जीवन में स्थिरता आती है.
मां शैलपुत्री की पूजा विधि
नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना (Kalash Sthapna) करके मां दुर्गा की पूजा शुरू करें और व्रत का संकल्प लें. इसके बाद मां शैलपुत्री की पूजा करें. उन्हें लाल फूल, सिंदूर, अक्षत, धूप आदि चढ़ाएं. फिर माता के मंत्रों का उच्चारण करें, दुर्गा चालीसा का पाठ करें, पूजा के अंत में गाय के घी के दीपक या कपूर से आरती करें.
मां शैलपुत्री को सफेद रंग बेहद प्रिय है इसलिए उन्हें सफेद रंग की बर्फी का भोग लगाएं. आप चाहें तो सफेद रंग के फूल भी अर्पित कर सकते हैं. इसके बाद भोग लगे फल और मिठाई को पूजा के बाद प्रसाद के रूप में लोगों में बांटें. जीवन की सभी समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए एक पान के पत्ते पर माता को लौंग, सुपारी और मिश्री रखकर भी अर्पित करें.